टोली विधि

टोली विधि
बाल्यावस्था की एक विशेषता यह है कि इस आयु वर्ग के लड़के और लड़कियां अपनी अपनी टोलियां बनाकर खेलना बातें करना और कार्य करना पसंद करते हैं इस प्रवृत्ति को टीम स्पिरिट कहा जाता है चाहे वे टीम अच्छे कार्यों के लिए हो या बुरे बच्चों की इस प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर लार्ड बेडेन पावेल ने स्काउटिंग में टोली विधि को अपनाया बीपी ने टोली विधि के संबंध में कहा है,-"टोली विधि लड़के /लड़कियों के लिए स्काउट/ गाइड शिक्षा का एक तरीका ही नहीं है, वरन् एकमात्र तरीका है। टोली विधि एक ऐसा आवश्यक लक्षण है, जिससे स्काउट/ गाइड प्रशिक्षण दूसरे सभी संगठनों के प्रशिक्षण से भिन्न है

टोली विधि की विशेषता:-
इससे उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है
निरीक्षण और परीक्षण की सुविधा उपलब्ध होती है
लोकतंत्रात्मक भावना का विकास होता है
श्रम विभाजन के दृष्टिकोण की पुष्टि होती है
मनोवैज्ञानिक विकास का अवसर प्राप्त होता है

टोली विधि की सफलता पर बीपी ने स्वयं प्रयोग किया था सन 1907 में 20 लड़कों का एक शिविर, जिन्हें विभिन्न विद्यालयों तथा आयु वर्ग से चुना गया था, और बीपी ने ब्राउनसी द्वीप में आयोजित किया। 5-5 लड़कों की चार टोलियां बनाई गई। यह प्रयोग अत्यंत सफल रहा जिसके आधार पर बीपी ने अपनी पुस्तक 'स्काउटिंग फॉर बॉयज' लिखी।
टोली विधि की विशेषता यह है कि इसमें प्रशिक्षण की इकाई एक टोली होती है  टोलियो के माध्यम से कार्य करना टोली विधि है 1 आयु वर्ग, मोहल्ला, गांव तथा स्वभाव के 6 से 8 स्काउट/ गाइड अपनी टोली गठित कर लेते हैं स्काउटर/ गाइडर द्वारा टोली के सदस्यों एवं मानसभा के परामर्श से सबसे अधिक कर्मठ और योग्य स्काउट /गाइड को टोली नायक नियुक्त किया जाता है टोली नायक अपनी सहायता के लिए किसी सुयोग स्काउट /गाइड को सहायक नियुक्त कर लेता /लेती है टोली के प्रत्येक सदस्य का कोई न कोई उत्तरदायित्व का कार्य सौंपा जाता है इस प्रकार टोली विधि से सभी को शिविरार्थियों सक्रियता का मापन किया जा सकता है

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